जाने दीजिये इस देवनागरी लिपि को, ये भी कोई लिपि है? जैसे किसी रस्सी के ऊपर कपड़े सूखने टांगने के लिये डाल देते हैं उसी तरह एक लकीर पर अक्षर टंगे रहते हैं। लिखने में मुश्किल, समझने में मुश्किल। क्यों ढो रहे हैं हम इस देवनागरी लिपि का बोझा?
रोमन एग्रीगेटर पर भी तो हम लोग आह, ऊह, वाह, वाह कर रहे हैं। आप सभी लोग एकदम सही कह रहे हैं कि रोमन लिपि में ब्लाग देखेंगे तो ज्यादा पाठक आयेंगे।
तो फिर देवनागरी में क्यों लिखें? सीधे सीधे रोमन लिपि में ही क्यों नहीं लिखते? अगर रोमन लिपि में लिखते हैं तो और भी ज्यादा ग्राहक आयेंगे। क्यों इस बेचारी देवनागरी बुढि़या मां का पल्लू पकड़ कर बैठें?
ब्लाग अपनी दिल की बात कहने का जरिया नहीं बल्कि दुकानदारी का नजरिया है। अपनी तराजू और बांट लेकर बैठे हैं कि कितने ग्राहक आये, किस ग्राहक ने क्या क्या कहा। सब तौल तौल कर माप माप कर बहीखातों में लिख लेंगे।
भले ही आज कम्प्यूटर पर हिन्दी एकदम सही तरह से काम कर पा रही हो। बाहर की मल्टीनेशनल कंपनिया अपनी दुकानदारी देवनागरी हिन्दी में ला रहीं हों। हिन्दी के अखबारों का अंग्रेजी से ज्यादा सर्कुलेशन हो । पर हम अपनी भाषा पर रोमन लिपि का ठप्पा लगा कर मगनलाल बने जा रहे हैं।
भले लोगो जब अपनी लिपि से बेईमानी ही करनी है तो अधूरी क्यों करते हो? पूरी तरह से करो! छोड़ो इस देवनागरी लिपि को, रोमन लिपि में ही लिखो।
जोर से बोलो
Roman Lipi Zindabad
velkam romanaagaree
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11 comments:
अच्छा कटाक्ष है।
ब्लाग अपनी दिल की बात कहने का जरिया नहीं बल्कि दुकानदारी का नजरिया है। अपनी तराजू और बांट लेकर बैठे हैं कि कितने ग्राहक आये, किस ग्राहक ने क्या क्या कहा। सब तौल तौल कर माप माप कर बहीखातों में लिख लेंगे।
बात केवल यह भी नहीं है.
रोमन देवनागरी के विकल्प के रूप में हममे से किसी को भी शायद ही स्वीकार्य हो। किन्तु यह देवनागरी की पूरक अवश्य है। जिसके पैर टूटे हुए हों उन्हे घर बैठे रहने के लिये विवश छोड़ देने के बजाय जैसे बैसाखी दी जाती है वैसे ही रोमन की यह बैसाखी भी उनके लिये काम करेगी जो देवनाग्री से अनभिज्ञ हैं।
जो देवनागरी से अवगत हैं उन्हें रोमन में लिखी हिन्दी पढ़ने में कितना कष्ट और असुविधा होती है, कहने की जरूरत नही है।
आपकी भावनाएँ अपनी जगह सहीं हैं। पर ये भी सच है कि रोमन ने हिंदी को फैलने में में मदद ही की है। जब हिंदी के फान्ट नहीं आए थे तो रोमन में लिखकर ही हम अपने आप को व्यक्त कर पाते थे। आज भी दक्षिण भारतीय और उर्दू मातृभाषा वाले लोग इस रूप में हिंदी का परिचय प्राप्त कर लेते हैं।
भाषा की सुंदरता तो तभी है जब वह अपनी लिपि में लिखी जाये। अपनी लिपि की तरफदारी करने का यह मतलब नहीं है कि हम अंग्रेजी की महत्ता को अनदेखा कर रहे हैं। लेकिन हर व्यक्ति अपनी भाषा को अपनी लिपि में पढ़ने का अभ्यस्त होता है। जहां मजबूरी हो वहां रोमन लिपि से काम चलाया जा सकता है लेकिन रोमन देवनागरी का विकल्प नहीं बन सकती। रोमन में लिखी हिंदी पढ़ने में इतनी मुश्किल होती है कि बयां नहीं किया जा सकता। इसलिये रोमन लिपि की भूमिका वहीं होनी चाहिये जहां विकल्प का अभाव हो। मेरे खयाल से तो शायद ही कोई हिंदी भाषी होगा जो अपनी भाषा की रचना को रोमन में पढ़ना पसंद करेगा।
जब आपको देवनागरी लिपि इतनी बेकार लगती है तो ब्लॉग देवनागरी में क्यों लिख रहे हैं ???
"छोड़ो इस देवनागरी लिपि को, रोमन लिपि में ही लिखो।"
शुरुआत आप ही करें, आज से और अभी से देवनागरी में लिखना बंद करें, ब्लॉग पर भी। फिर देखिए आपको कितने लोग पढ़ते हैं।
मनीष भाई की बात से पूर्णतः सहमत हूँ.
आपने तो स्वयं यह लिखकर कि:
"भले लोगो जब अपनी लिपि से बेईमानी ही करनी है तो अधूरी क्यों करते हो? पूरी तरह से करो! छोड़ो इस देवनागरी लिपि को, रोमन लिपि में ही लिखो।"
सिद्ध कर दिया है कि आप स्वयं ही सबसे बड़े बेईमान हैं और दूसरे लोगों को बेईमानी करने के लिये कह रहे हैं।
और भी,
"क्यों इस बेचारी देवनागरी बुढि़या मां का पल्लू पकड़ कर बैठें?"
क्या आप बताना चाहते हैं कि आपको जन्म देने वाली माँ जब बुढ़िया हुईं रही होंगी तो आपने उनका पल्लू छोड़ दिया था?
यदि ऐसा है तो जिस व्यक्ति के हृदय में अपनी जन्मदायिनी माता के प्रति भी सम्मान न हो, हम उसकी बातों का कद्र क्यों करें?
अनिल रघुराज समझे, मनीष समझे, थोड़ा संजय तिवारी भी समझे।
शेष तो मुझे अक्ल से पैदल ही लगते हैं।
आप अपने आपको हिन्दी के सेवक वगैरह जाने क्या क्या कहते हो।
मित्रवर आप सचमुच वैश्वीकरण के लिए एक दम उपयुक्त हैं। " क्यों इस बेचारी देवनागरी बुढि़या मां का पल्लू पकड़ कर बैठें?" माता-पिता के बूढे हो जाने के बाद उन्हें बोझ समझना और उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ देना आजकल फैशन का पर्याय हो गया है सो आप भी इसी बात के समर्थक हैं। आप शायद प्रचलनवादी हैं। मतलब फैशनेबल। अच्छा है।
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