Thursday, October 4, 2007

लोग बिना पढ़े ही कमेन्ट कर डालते हैं.

मैंने सबसे पहले इस ब्लाग पर इब्ने इंशा की नज्म लिखी। शीर्षक में इब्ने इंशा का नाम भी लिखा पर उस पर एक व्यक्ति का कमेन्ट आया कि वाह आपने क्या अच्छा लिखा है। उस व्यक्ति ने पढ़ने की जहमत ही नहीं उठायी कि ये मेरा लिखा नहीं बल्कि इब्ने इंशा का लिखा है। भाई जब समझने का शऊर नहीं है तो कमेन्ट क्यों करते हो?

अभी मैंने तीन ब्लाग लिखे, उस पर कमेंन्टों को देखकर लगा कि अगर हिन्दी के एसे ही सेवक होंगे तो भगवान ही मालिक है।

शुक्र है कि अनिल रघुराज समझे, उडन तशतरी समझी, मनीश और संजय तिवारी समझे, शेष तो भड़काये हुये थे सो आकर धम्म धम्म कर रहे थे।

जब समझ ही नहीं पाते तो कमेन्ट क्यों करते हो?

4 comments:

अनिल रघुराज said...

महारथी जी, क्या कीजिएगा। लोग कमेंट पढ़ने के लिए नहीं करते, बल्कि अपना पढ़ाने के लिए करते हैं। यहां हर किसी को लगता है कि उसके पास अनमोल खजाना है, बाकी सभी खाक हैं। लेकिन सकारात्मक पहलू ये है कि इसी बहाने आपसी संवाद तो हो रहा है। यह संवाद कुछ समय के बाद सार्थक भी बन जाएगा। फिक्र मत कीजिए। बस मेरी तरह यही गाइए कि पल भर के कोई मुझे प्यार कर ले, झूठा ही सही।

Udan Tashtari said...

हम भी अनिल भाई की सलाह मानते हुए यही गाते रहते हैं: पल भर के कोई मुझे प्यार कर ले, झूठा ही सही।

--अब तो धुन भी पकड़ में आने लगी है बस गला साथ नहीं देता. :)

अजित वडनेरकर said...

bahut khoob. dhamm dhamm mazedaar lagii.

Unknown said...

"अभी मैंने तीन ब्लाग लिखे, उस पर कमेंन्टों को देखकर लगा कि अगर हिन्दी के एसे ही सेवक होंगे तो भगवान ही मालिक है।"

भगवान को ही मालिक रहने दीजिये। आप क्यों मालिक बनने की कोशिश कर रहे हैं?

"जब समझ ही नहीं पाते तो कमेन्ट क्यों करते हो?"

समझने वाली बात करोगे तभी न समझेंगे। समझाने की कूबत है नहीं और दूसरों पर नहीं समझ पाने का दोषारोपण करते हो।