Sunday, September 30, 2007
रोमन लिपि परिषद के सदस्य बनिये
26 जनवरी 1984 को भारतीय भाषाओं को इधर उधर फैली ऊट पंटाग लिपियों से मुक्ति दिलाने के लिये रोमन लिपि परिषद की स्थापना की गई है। इसके मुख्य ध्येय हैं
भारतीय भाषाओं को रोमन लिपि में लिखने के लिये बढ़ावा देना
रोमनीकरण के फायदे की बातों को चतुर्दिक दिशाओं में पहुंचाना
श्री मधुकर एन गोगटे इसके संस्थापक सदस्य हैं और इस परिषद का कार्यालय ताड़देव एयरकंडीशंड मार्केट में है।
अधिक जानकारी आप श्री मधुकर एन गोगोटे को mngogate@vsnl.com पर या mngogate1932@yahoo.com. पर ईमेल करके प्राप्त कर सकते हैं।
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8 comments:
जोइन कर लेंगे पहले यह बता दो की यह कमल लिखा है या कमाल या कामाल या कामल?
KAMAL
जरा यह भी पढ़ना तो..
ajnani, anbhijna log hi bharatiya lipiyon ko ooljalool maante hain. matibhram ki avastha hain bas.
रोमन लिपि परिषद् की जानकारी देने के लिए, रोमन लिपि को बढ़ावा देने की सिफारिश करने के लिए भी देवनागरी का सहारा लिया जा रहा है। kamal है।
रोमन लिपि को उपयोग करना केवल एक अस्थायी माध्यम था कम्प्यूटर पर हिन्दी व अन्य भारतीय लिपियों के उपयोग के लिए वो भी तब जब कम्प्यूटर पर इनके लिए कोई मानक तय नहीं थे। पर अब स्थितियॉं अलग है।
हर भाषा को सौन्दर्य उसकी अपनी लिपि में ही होता है। रोमन लिपि से क्या लाभ हो जाने वाले हैं खुदा जाने। और जहॉं तक लिप्यांतरण का सवाल है तो अब ऐसी सुपिधा उपलब्ध है जो हिन्दी या अन्य लिपियो को सीधे पाठक की लिपि में ही बदल दे, तो ऐसे में रोमन पर किसी प्रकार की निर्भरता स्वत: समाप्त हो जाती है।
रोमन लिपि या अंग्रेज़ी भाषा से न कभी कोई बैर था न होगा पर भारतीय लिपियों को उटपटांग कहना केवल वह ऐसी सोच रखने वालों के मानसिक दीवालिएपन की ही घोषणा करता है।
भारतीय लिपियों को उटपटांग कहने वाले भाई साहब, घर-आंगन की माटी की सुगंध भी कभी उटपटांग लगी आपको?
26 जनवरी 1984 को भारतीय भाषाओं को इधर उधर फैली ऊट पंटाग लिपियों से मुक्ति दिलाने के लिये रोमन लिपि परिषद की स्थापना की गई है।
this detrogaotery language is of the blog author जगत चन्द्र पटराकर 'महारथी' the origal web site is www.mngogate.com
वैसे तो आप जैसे मुर्खाधिराज के ब्लोग पर टिप्पणी करना समय की बरबादी है. पर फिर भी मै समय बरबाद कर यह कार्य कर रहा हुँ.
भाईसाहब आपको नही लगता कि आपको यह पोस्ट रोमन लिपि मे लिखनी चाहिए थी, तभी सार्थक होती ना बात.
आप जो भी हैं आपको अपने दिमाग का इलाज कराना चाहिए. भारत के पागलखाने उलजलूल होंगे. आप इंग्लैड के किसी सुसंस्कृत पागलखाने मे जल्द से जल्द भरती हो जाएँ.
यह आपके लिए भी अच्छा होगा और देश के लिए भी. मुफ्त सलाह दे रहा हुँ, धन्यवाद ना भी देंगे तो Thanks से काम चला लुंगा.
एक भारतीय होकर भी भारतीय भाषाओं की लिपियों को ऊट पटांग समझने वाले आप जैसे विचार वाले आपको कितने मिलेंगे यह तो पता नहीं किन्तु आपके चिट्ठे की टिप्पणियाँ ही बता रही हैं कि भारतीय भाषाओं की लिपियों को चाहने वाले तथा उस पर गर्व करने वाले लोग कितने हैं।
मित्रवर,
लगता है कि आप मनसिक विकृति स्टॉकहोम सिंड्रोम से पीड़ित हैं। किसी अच्छे मनोचिकित्सक से अपना इलाज कराइए।
और भैया कम से कम जिस देश का नमक खा रहे हो उस देश के साथ नमक हरामी तो न करो।
और कृपया इस चिट्ठेजगत को अपनी इस कूड़े करकट वाली मनसिकता से मुक्त रखें।
मैं भी यही कहूंगा कि इस पर टिप्प्णी करना समय की और शब्दों की बर्बादी है पर अपनी माँ समान भाषा के बारे में इतना हल्का शब्द उपयोग करने पर रहा नहीं जाता।
अगर देशद्रोही की नई परिभाषा में बनाई जाये तो बस आपका नाम ले लेना काफी होगा।
अपने आप ही स्वयं को महारथी घोषित करने वाले है मूर्ख इन्सान क्या आप अपनी माँ को भी ऐसा ही कहेंगे?
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