Monday, September 10, 2007

इब्ने इंशा की फ़र्ज़ करो

फ़र्ज़ करो हम अहले वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूठी हों अफ़साने हों
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता, जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी, आधी हमने छुपाई हो
फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूंढे हमने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सचमुच के मयख़ाने हों
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूठा, झूठी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में सांस भी हम पर भारी हो
फ़र्ज़ करो ये जोग बिजोग का हमने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो

3 comments:

Shastri JC Philip said...
This comment has been removed by the author.
जगत चन्द्र पटराकर 'महारथी' said...

क्या कहते हो महाराज?
साफ साफ लिखा है कि ये इब्ने इंशा की है और आप तो इब्ने इंशा की दौलत को मेरे मत्थे मढ़ रहे हो।
क्या वो 50,000 चिट्ठेकार आप जैसे ही होंगे?

Shastri JC Philip said...

प्रिय महारथी जी,

टिप्पणी मे गलती का कारण मूल आपके व्याकरण में आई गलती है. हिन्दी के ज्ञाता लोग इस व्याकरण की गलती को पकड लेंगे.

जहां तक मेरे प्रति जो आक्षेप के वाक्य आपने कहे हैं वह आपका अपना नजरिया है, उससे मुझे कोई तकलीफ नहीं है -- शास्त्री जे सी फिलिप

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!